ग्वार
की फसल पश्चिमी राजस्थान के लिए एक वरदान है। जो ग्वार क्षेत्र के पूरे अर्थ तंत्र
को चलाती है । ग्वार एक बहु-उपयोगी फसल है। ग्वार जिस भूमी में लगाया जाता है, उस भूमी
को भी सुधारता है । इसे हरी खाद के रूप में काम में लिए जाता है । ग्वार की जड़ों में राइज़ोबियम की
गांठे होती है जो भूमी में नाइट्रोजन को फसल में पहुँचाने का काम करती है ।
स्थानीय जनता ग्वार को हरी
सब्जी के रूप में काम में लेती है । बाज़ार में ग्वार
की फली एक महँगी सब्जी के रूप में मिलती है । ग्वार को सुखा कर के, सुखी
सब्जी के रूप में भी कम में लिया जाता है । सुखी हुयी हरी ग्वार की फली के स्नैक्स भी बनाये
जाते है । ये सनेक्स खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होते है । ग्वार को पशु चारे के रूप में भी
काम में लेते है । ग्वार के फसल
के अवसिष्ठ/ भूसे को ऊंट का मुख्या चारा माना जाता है । ऊँट रेगस्तान का मुख्या
भारवाहक पशु है, कुल मिलाके ऊँट रेगुस्तान की एक जीवन रेखा । ग्वार का दलिया पशुओं को पशु आहार
के रूप में भी देते है ।
ग्वार
विकास के पहियों के साथ भारत से बाहर निर्यात किया जाने लग गया । ग्वार
की उपयोगिता समय के साथ धीर धीर बढती ही गयी । धीर धीर ग्वार विश्व को गतिमान रखने वाले
तेल व प्राकृत गैस उद्योग के दरवाजे तक पहुँच गया । राजस्थान के किसानो को सीधा
तेल व प्राकृत गैस उद्योग से जोड़ दिया । वर्तमान दौर में पश्चिमी राजस्थान में
प्रचुर कच्चा तेल व गैस मिलने के कारण यह क्षेत्र तेल व प्राकृत गैस उद्योग से अभी
जुडा है । लेकिन ग्वार ने ये दस्तक बहुत पहले ही दे
दी थी । पिछले साल 2017- खरीफ के राजस्थान सरकार के आंकड़ों के अनुसार ग्वार राजस्थान में 31,68,018
हेक्टेयर क्षेत्र में लगाया गया था ।
ग्वार
भारत से एक्सपोर्ट किये जाने वाले मुख्य कृषि उत्पाद के रूप में उभरा है । वर्ष
2014-15, 2015-16, 2016-17 क्रमशः 6,65,177- मेट्रिक टन
, 3,25,250- मेट्रिक टन , 4,19,948- मेट्रिक टन ग्वार
गम का निर्यात हुआ है । ग्वार देश को विदेशी मुद्रा भी उपलब्ध करवाता है ।
वर्ष 2014-15, 2015-16, 2016-17 में क्रमशः 9479.93 करोड़
, 3,23,3.87 करोड़ , 3,10,6.62 करोड़ रुपये मूल्य
का ग्वार गम निर्यात हुआ है । सबसे
महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्वार विदेशी
मुद्रा भंडार बिना किसी विशेष सरकारी निवेश के अर्जित करवाता है । अन्य सभी कृषि
उत्पाद, डीजल सब्सिडी, यंत्र सब्सिडी, पानी, बिजली, टैक्स
छूट, सस्ते किसान लोन, फसल केन्द्रित कृषि अनुसन्धान केन्द्र, कृषि
वैज्ञानिक के रूप में व्यय करवाने के बाद निर्यात करने की स्थिति में आती है । लेकिंन
ग्वार ऐसे कोई भी खर्चे नहीं
करवाता।
बीच बीच में अपनी कीमतों के कारण ग्वार सनसनी फ़ैलाने वाली खबर के
साथ अपनी उपस्थिति पुरे विश्व में दर्ज करवा देता है । पिछली बार ग्वार वर्ष 2012 में 30,000
रूपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिका था । इस बार भी वैसी ही परिस्थितिया बनी हुयी
है । पिछले सालों के मुकाबले ग्वार
का उत्पादन कम है तथा ग्वार गम
की मांग धीरे धीर बढ़ रही है । बढ़ी हुयी मुख्य मांग तेल व प्राकृत गैस उद्योग से आ
रही है ।
कच्चे तेल के भाव अन्तराष्ट्रीय बाज़ार में बहुत
तेज़ है । जिससे अमेरिका में कच्चे तेल के नये कुए खोदे जा रहे है । अमेरिका में कच्चे
तेल का उत्पादन धीरे धीर बढ़ रहा है । अभी जनवरी में कच्चे तेल का उत्पादन 1.1 करोड़
बैरल प्रति दिन के उच्चतम स्तर पर पहुँच जायेगा ।
कच्चे तेल के कुओं में ग्वार
गम एक मुख्य घटक के रूप में काम में आता है । कच्चे तेल के भाव अन्तराष्ट्रीय
स्तर पर दिनों दिन बढ़ते जा रहे है। अगर कच्चे तेल के भाव 80 डालर के आस पास पहुँच
जाते है तथा भावों में कुछ स्थिरता आजाती
है तो ग्वार गम का उपयोग बहुत बड़े
स्तर पर होगा ।
अबकी बार का उत्पादन, ख़राब
मौसमी परिस्थितयों के कारण बहुत कम हुआ है। बढ़ी हुयी मांग से बाज़ार में ग्वार व ग्वार
गम की कीमतें ऊपर की तरफ जाएगी । उम्मीद है की अबकी बार किसानो व व्यापारियों
को ग्वार मुनाफा दे कर के जायेगा ।
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