वर्ष 2012 में ग्वार में ऐतिहासिक तेजी आई थी, उस साल ग्वार की कीमतों में दस गुना तक बढ़ोतरी हुई थी है। 2700 से 3000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिकने वाला ग्वार 30000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव तक बिका था । उस समय बाज़ार की प्रस्थितियां ग्वार के पक्ष में थी। 2012 में ग्वार का उत्पादन का अनुमान कम था, नए तेल के कुएं फ्रेकिंग तकनिकी (ग्वार का उपयोग सबसे ज्यादा इसी मे ही होता है) से खुदने शुरू हुए थे, कच्चे तेल की कीमतें ऊँचाई पर थीं। वैस की वैसी प्रिश्तितीय इस बार भी बन रही है पिछली सालों की तुलना में इस साल ग्वार का उत्पादन बहुत कम हुआ है। अमरीकी प्रशासन ने उर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए अपने सारे के सारे तेल उत्पादन क्षेत्रों में तेल खनन का काम शुरु करने जा रहा है, जिसकी घोषना पिछले सप्ताह अमरीकी राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड जी ट्रंपवाल ने कर दी थी, कच्चे तेल की कीमतें धीरे धीरे बढ़ रही हैं और ग्वार गम की निर्यात की मांग भी बढ़ रही है।
सरकार द्वारा जारी निर्यात के आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में इस साल ग्वार गम एक्सपोर्ट में 45% की वृद्धि हुई है। ग्वार गम के निर्यात की प्रति इकाई मूल्य में भी वृद्धि हुई है निर्यात के डाटा बहुत ही साकारात्मक है बाजार से प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्वार गम के एक्सपोर्ट की डिमांड अच्छी चल रही है ।
पाकिस्तानी व्यापारी और किसानों के अनुसर ग्वार की कीमतें पाकिस्तान में भी बढ़ रही है । पाकिस्तान में इस साल ग्वार का उत्पादन तो कम था परन्तुं पिछले सालों का स्टॉक अभी भी व्यापारियों और किसानों के पास रखा हुआ है । अगर ग्वार गम की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती है तो पाकिस्तान में भी ग्वार की कीमते बढ़ जाएगी ।
बाज़ार से मिले आरंभिक आकड़ों के अनुसार ग्वार की फसल का कुल उत्पादन 70,00,000 - 75,00,000 बोरी के आस पास हुआ है । इस वर्ष ग्वार का कुल उत्पादन क्षेत्रफल कम था, पिछले 3-4 वर्षों की ग्वार की कम कीमतों के कारण सिंचाई में किसान भाइयों ने ग्वार की खेती कम कर थी । जन्हा तक पुराने स्टॉक की बात है अभी बाज़ार में ज्यादातर नयी फसल ही आ रही,व्यापारियों के साथ चर्चा के बाद यह पाया गया कि केवल कुल आवक का 15-20% ग्वार पुराना है। यह भी पाया गया है की पुराने ग्वार में से गम का उत्पादन कम नमी के कारण कम बैठता है ।
कच्चे तेल की कीमतों में लगातार सुधार होरहा है, पिछले क्रूड आयल का भाव 2015 के बाद उच्चतम स्तर पर था। ताज़ा परिस्थितियों के अनुसार कीमतों में और वृद्धि जरी रहेगी क्योंकि तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक ने अपने उत्पादन में कटौती का फैसला किया है । तेल ऊत्पादक मध्य पूर्व एशिया क्षेत्र और ईरान में राजनीतिक अस्थिरता का दौर जारी है। गिर हुयी कच्चे तेल की कीमतों के कारण पिछले 4-5 वर्षों के दौरान खाड़ी के देशों का राजस्व बहुत कम होगया है । तेल ऊत्पादक मध्य पूर्व एशिया क्षेत्र के देशो का ज्यादा तर राजस्व कच्चे तेल के निर्यात से ही आता है । इन देशो की सरकारे अपना राजस्व बढ़ने संघर्ष कर रही है। हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी ने राजस्व बढ़ाने के लिए बिक्री के सामान पर वैट टैक्स लगाना शुरू कर दिया है।
सरकार द्वारा जारी निर्यात के आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में इस साल ग्वार गम एक्सपोर्ट में 45% की वृद्धि हुई है। ग्वार गम के निर्यात की प्रति इकाई मूल्य में भी वृद्धि हुई है निर्यात के डाटा बहुत ही साकारात्मक है बाजार से प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्वार गम के एक्सपोर्ट की डिमांड अच्छी चल रही है ।
इस साल ग्वार की नयी आवक के बाद ग्वार की कीमतें 40% तक बढ़ गई है। जोधपुर के बाजार में ग्वार के भाव 4200/ क्विंटल से ऊपर चल रहे है । बाजार में ग्वार की मांग के चलते इस महीने में ग्वार के भाव रुपये 4500/ क्विंटल के स्तर को पार कर जाने की उम्मीद है। बाज़ार के जानकारों के अनुसार वर्तमान परिदृश्य में इस साल ग्वार आराम से 5000 प्रति क्विंटल रुपये का स्तर पर आराम से पार कर लेगा है। लेकिन किसानों और व्यापारियों को वर्ष 2012 के स्तर का इंतजार नहीं करना चाहिए अपने मुनाफे व जरुरत के अनुसार माल को धीर धीरे बेचते रहे ।
पाकिस्तानी व्यापारी और किसानों के अनुसर ग्वार की कीमतें पाकिस्तान में भी बढ़ रही है । पाकिस्तान में इस साल ग्वार का उत्पादन तो कम था परन्तुं पिछले सालों का स्टॉक अभी भी व्यापारियों और किसानों के पास रखा हुआ है । अगर ग्वार गम की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती है तो पाकिस्तान में भी ग्वार की कीमते बढ़ जाएगी ।
तेल और प्राकृतिक गैस उद्योग के अलावा, खाद्य और फार्मा उद्योग से अच्छी ग्वार गम की अच्छी मांग चल रही है। चावल व मांस के निर्यात बाद, निर्यात के लिए ग्वार भारत का प्रमुख कृषि उत्पाद है। ग्वार की कीमतें घरेलु कारकों के अलावा अंतर्राष्ट्रीय कारको पर भी निर्भर करती है जैसे अंतरराष्ट्रीय आर्थिक उठापटक, कच्चे तेल की कीमतें, अमरीकी डॉलर में उतार चढ़ाव, अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक घटनायें आदि । 4500 के स्तर के बाद किसान को अपने मॉल को पूरा होल्ड या एक साथ बेचने की बजाय थोडा थोडा माल बेचते रहना चाहिए ।
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